



रांची: सरहुल से पहले ही सरहुल के रंग में झारखंड रंगने लगा है. राजधानी से सटे रातू में सरहुल को लेकर कार्यक्रम का आयोजन किया गया. बारिश के बावजूद यहां हजारों की संख्या में लोग पहुंचे. सरहुल कार्यक्रम के दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता रोशन खलखो ने कहा कि सरहुल पर्व झारखंड और आदिवासियों की पहचान है, हमें अपनी परंपरा बचाये रखने की जरूरत है. कार्यक्रम में पारंपरिक वेशभूषा में आए खोड़हाधारियों ने सरहुल गीतों पर जमकर नृत्य किया. कार्यक्रम में इटकी, नगड़ी, बेड़ो के लोगों ने हिस्सा लिया. सरहुल पूजा समिति रातू के अध्यक्ष अमर उरांव ने कहा कि हम प्रकृति के पूजक हैं परंपरा को बनाए रखने की जरूरत है. अपने पूर्वजों की बनाई परंपरा को बनाए रखना होगा. कार्यक्रम का उद्घाटन रातू महाराजा की पुत्री माधुरी मंजरी, कांग्रेस नेता अजय नाथ शाहदेव, राज्यसभा सांसद महुआ मांझी ने दीप जलाकर किया.
क्या है सरहुल, कब मनाया जाएगा ?
24 मार्च शुक्रवार को सरहुल का पर्व मनाया जाएगी, शोभा यात्रा और झांकी निकाली जाएगी. झारखंड में सरहुल कई जनजाति मनाते हैं, लेकिन खास तौर पर मुंडा, हो और उरांव इस त्योहार को मनाते हैं. इस पर्व के बाद नई फसल की कटाई शुरु हो जाती है. सरहुल में प्रकृति की पूजा होती है. इस दौरान विशेष पोशाक लड़के सफेद धोती और सफेद, कमीज-बनियान पहनते हैं तो महिलाएं लाल पाढ़ वाली साड़ी और बालों में फुल लगाए रहती हैं. इस दौरान सरहुल नाच, साल पेड़ की पूजा होती है. खानपान में हड़िया के साथ सुखी हुई मछली, कई तरह के पत्ते, फल, बीज खाए जाते हैं. इससे जुड़े कार्यक्रम, मिलन समारोह कई दिनों तक चलता रहता है.
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