सूर्य उपासना के महापर्व चैती छठ की शुरुआत, जानें क्या है महत्वता

रांची: नहाय खाय के साथ आज से सूर्य उपासना के महापर्व चैती छठ की शुरुआत हो गई.  चार दिनों तक वाला हिंदुओ का ये महापर्व 28 मार्च को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य के साथ समाप्त होगा.

नहाय-खाय के साथ शुरुआत

पहले दिन नहाय खाय होता है, इस दिन छठ व्रती सुबह उठकर साफ-सफाई करते हैं और स्नान के बाद कद्दू- चने दाल की सब्जी और चावल खाते हैं, इसे प्रसाद के तौर पर बांटा भी जाता है.

दूसरे दिन खरना

कल यानि 26 मार्च को खरना होता है, इसमें मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी को जलाकर चावल, दूध और गुड़ की खीर बनाई जाती है, जिसे शुद्ध गेहूं के पीसे आटे की रोटी-पुड़ी के साथ पहले सूर्यदेव को भोग लगाया जाता है, फिर व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं, और इसी के साथ 36 घंटों का निर्जला उपवास भी शुरु हो जाता है. खरना का प्रसाद ग्रहण करने दूर दूर से लोग छठव्रतियों के घर पहुंचते हैं.

तीसरे दिन संध्या अर्घ्य

27 मार्च यानि सोमवार की शाम पूजन सामाग्रियों से भरा छठ दौरा लेकर नदी, तालाब, घाटों पर पहुंचकर व्रती अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य देते हैं, इस दौरान छठ घाटों में काफी भीड़ देखी जाती है. पूरा माहौल छठ के गीतों से भक्तिमय हो जाता है. किसी मेले सा नजारा होता है.

चौथे दिन उगते सूरज को अर्घ्य

मंगलवार 28 मार्च को नदी, तालाब, छठ घाटों पर उदयीमान सूर्य को अर्घ्य के साथ ही चार दिनों से चले आ रहे लोकआस्था के इस महापर्व का समापन हो जाता है. जिसके बाद सभी को छठ का प्रसाद बांटा जाता है. सुबह के अर्घ्य के लिये देर रात से छठ घाटों पर लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो जाता है.

क्यों मानाया जाता है छठ

छठ पूजा के दिन माता छठी की पूजा की जाती हैं, जिन्हें वेदों के अनुसार उषा (छठी मैया) कहा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में सूर्य देव की पत्नी कहा गया हैं इसलिए इस दिन सूर्य देवता की पूजा का महत्व पुराणों में निकलता हैं. इस पूजा के जरिये भगवान सूर्य का देव को धन्यवाद दिया जाता हैं. सूर्य देव के कारण ही धरती पर जीवन संभव हो पाया हैं, एवम सूर्य देव की अर्चना करने से मनुष्य रोग मुक्त होता हैं. इन्ही सब कारणों से प्रेरित होकर यह पूजा की जाती हैं.

छठ के पीछे पौराणिक कथाएं

कहा जाता है कि बहुत समय पहले एक राजा रानी हुआ करते थे. उनकी कोई सन्तान नहीं थी. राजा इससे बहुत दुखी थे. महर्षि कश्यप उनके राज्य में आये. राजा ने उनकी सेवा की महर्षि ने आशीर्वाद दिया जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई लेकिन उनकी संतान मृत पैदा हुई जिसके कारण राजा रानी अत्यंत दुखी थे जिस कारण दोनों ने आत्महत्या का निर्णय लिया. जैसे ही वो दोनों नदी में कूदने को हुए उन्हें छठी माता ने दर्शन दिये और कहा कि आप मेरी पूजा करे जिससे आपको अवश्य संतान प्राप्ति होगी. दोनों राजा रानी ने विधि के साथ छठी की पूजा की और उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई.तब ही से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पूजा की जाती हैं.

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