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चैती छठ का तीसरा दिन, आज अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को पड़ेगा अर्घ्य

रांची: सूर्य उपासना के महापर्व चैती छठ का तीसरा दिन है. आज भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य दिया जाएगा. शाम पूजन सामाग्रियों से भरा छठ दाउरा लेकर नदी, तालाब, घाटों पर पहुंचकर व्रती अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य देंगे, इस दौरान छठ घाटों में काफी भीड़ देखी जाती है. पूरा माहौल छठ के गीतों से भक्तिमय हो जाता है. किसी मेले सा नजारा होता है. छठ घाटों में अर्घ्य को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. इस से पहले कल छठ व्रतियों ने खरना का प्रसाद ग्रहण किया, इसके साथ ही उनका 36 घंटों के निर्जला उपवास भी शुरु हो गया.

कल उगते सूरज को अर्घ्य

कल भोर तालाब, छठ घाटों पर उदयीमान सूर्य को अर्घ्य के साथ ही चार दिनों से चले आ रहे लोकआस्था के इस महापर्व का समापन हो जाएगा. 36 घंटो बाद छठ व्रति पारण कर अपना उपवास खत्म करेंगे. जिसके बाद सभी को छठ का प्रसाद बांटा जाता है. सुबह के अर्घ्य के लिये देर रात से छठ घाटों पर लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो जाता है.

क्यों मानाया जाता है छठ

छठ पूजा के दिन माता छठी की पूजा की जाती हैं, जिन्हें वेदों के अनुसार उषा (छठी मैया) कहा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में सूर्य देव की पत्नी कहा गया हैं इसलिए इस दिन सूर्य देवता की पूजा का महत्व पुराणों में निकलता हैं. इस पूजा के जरिये भगवान सूर्य का देव को धन्यवाद दिया जाता हैं. सूर्य देव के कारण ही धरती पर जीवन संभव हो पाया हैं, एवम सूर्य देव की अर्चना करने से मनुष्य रोग मुक्त होता हैं. इन्ही सब कारणों से प्रेरित होकर यह पूजा की जाती हैं.

छठ के पीछे पौराणिक कथाएं

कहा जाता है कि बहुत समय पहले एक राजा रानी हुआ करते थे. उनकी कोई सन्तान नहीं थी. राजा इससे बहुत दुखी थे. महर्षि कश्यप उनके राज्य में आये. राजा ने उनकी सेवा की महर्षि ने आशीर्वाद दिया जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई लेकिन उनकी संतान मृत पैदा हुई जिसके कारण राजा रानी अत्यंत दुखी थे जिस कारण दोनों ने आत्महत्या का निर्णय लिया. जैसे ही वो दोनों नदी में कूदने को हुए उन्हें छठी माता ने दर्शन दिये और कहा कि आप मेरी पूजा करे जिससे आपको अवश्य संतान प्राप्ति होगी. दोनों राजा रानी ने विधि के साथ छठी की पूजा की और उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई.तब ही से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पूजा की जाती हैं.

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